कौन देता है ये हक कि किस रास्ते को आम बनाना है और किसे खास?......
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आरयू में भी इसकी डिमांड राजस्थान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स का भी मानना है कि यूनिवर्सिटी को सोशल नेटवर्किग साइट्स से जुड़कर अपनी सूचनाओं को आम बनाना चाहिए।
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इस तरह इनका तजरुबा हिमायत अली शायर और साहिल अहमद से बिल्कुल अलग हो जाता है और नज़्म में तासीर और नग़मगी की फ़िज़ा क़ाइम हो जाती है जो क़ारी को बाँधे रखती है-मसलन ग़म की बारात ले गए होते जाने वाले चले गए तन्हा मुझको भी साथ ले गए होते शब हुई झिलमिला गए जुगनू सुन के मेरे तबादले की ख़बर उसकी आँखों में आ गए आँसू रिवायत से हटकर किसी नई सिंफ़ में तजरुबा करना और उसे मक़बूल ए ख़ास ओ आम बनाना बच्चों का खेल नहीं है।
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इस तरह इनका तजरुबा हिमायत अली शायर और साहिल अहमद से बिल्कुल अलग हो जाता है और नज़्म में तासीर और नग़मगी की फ़िज़ा क़ाइम हो जाती है जो क़ारी को बाँधे रखती है-मसलन ग़म की बारात ले गए होते जाने वाले चले गए तन्हा मुझको भी साथ ले गए होते शब हुई झिलमिला गए जुगनू सुन के मेरे तबादले की ख़बर उसकी आँखों में आ गए आँसू रिवायत से हटकर किसी नई सिंफ़ में तजरुबा करना और उसे मक़बूल ए ख़ास ओ आम बनाना बच्चों का खेल नहीं है।